एक जीवनकाल से कम अवधि में वन्य जीवों की संख्‍या में औसतन 69 प्रतिशत की भारी गिरावट

Posted on
14 October 2022
नदी जीव-जंतुओं की संख्‍याओं में 83 प्रतिशत की कमी आई है
रिपोर्ट के अनुसार एक प्रकृति-अनुकूल समाज सुनिश्चित करने में देर कतई नहीं की जानी चाहिए
 
नई दिल्ली, 13 अक्तूबर 2022 - डब्ल्यूडब्ल्यूएफ लिविंग प्लानेट रिपोर्ट (एलपीआर) 2022 के अनुसार, निरीक्षित वन्य जीव-जंतुओं -- स्तनधारियों, पक्षियों, उभयचरों, रेंगने वाले जीव-जंतुओं और मछलियों -- की संख्‍या में सन्‌ 1970 से आज तक 69 प्रतिशत की भारी गिरावट आई है। रिपोर्ट में प्रकृति की स्थिति के चिंताजनक भविष्य पर प्रकाश डाला गया है और सरकारों, कंपनियों व लोगों से गतिविधियों में तत्काल बदलाव लाकर जैवविविधता की क्षति को रोकते हुए उसे फिर से उसकी पहले की स्थिति में लाने की अपील की गई है। इस लिविंग प्लानेट रिपोर्ट में दृढ़तापूर्वक यह उल्लेख भी किया गया है कि पृथ्वी वैश्विक स्तर पर दोहरे संकटों से घिरी है। जलवायु परिवर्तन और जैवविविधता के पतन के एक दूसरे से जुड़े संकट हमारी गतिवि‍धियों के मुख्‍य केंद्र हैं। यह स्पष्ट है : जब तक हम इन संकटों को दो अलग-अलग समस्याओं के रूप में देखना नहीं छोड़ देते, तब तक किसी समस्या का समाधान असरदार ढंग से नहीं किया जा सकता।

परिणामों पर अपना मंतव्य रखते हुए, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंटरनेशनल के डाइरेक्टर जेनरल मार्को लैंबटिनी ने कहा : ''मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन व जैवविविधता के पतन के दोहरे संकट हमारे सामने आ खड़े हुए हैं, जिनके चलते मौजूदा व आने वाली पीढ़ियों के कल्याण के समक्ष खतरा पैदा हो गया है। वन्य जीव-जंतुओं की संख्‍या में, विशेष रूप से विश्व के सर्वाधिक जैवविविधता के भूक्षेत्रों वाले उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के जीव-जंतुओं की संख्‍या में, भारी गिरावट को लेकर डब्ल्यूडब्ल्यूएफ अत्यंत चिंतित है।''

रिपोर्ट में प्रस्‍तुत जेडएसएल (जूओलॉजिकल सर्वे ऑव लंडन) के लिविंग प्‍लानेट इंडेक्‍स के अब तक के विशालतम डेटासेट, जिसमें 5,230 जीव-जंतुओं की लगभग 32,000 संख्‍याओं का विवरण है, से पता चलता है कि जिन उष्‍णकटिबंधीय क्षेत्रों में कशेरुकी जीव-जंतुओं की निगरानी की गई, वहां उनकी संख्‍याओं में अचानक से भारी कमी आई है। इस एलपीआई से विशेष रूप से यह संकेत मिलता है कि वर्ष 1970 से 2018 के बीच लैटिन अमेरिकी और कैरिबियाई क्षेत्र में निरीक्षित वन्‍य जीव-जंतुओं की संख्‍या में औसतन 94 प्रतिशत की कमी आई है। इस एलपीआई से विशेष रूप से यह संकेत मिलता है कि वर्ष 1970 से 2018 के बीच लैटिन अमेरिकी और कैरिबियाई क्षेत्र में निरीक्षित वन्य जीव-जंतुओं की संख्‍या में औसतन 94 प्रतिशत की कमी आई है।      

रिपोर्ट से पता चलता है कि विश्व भर में आवास क्षेत्र के पतन और क्षति, उपयोग, आक्रामक जीव-जंतुओं की घुसपैठ, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और रोग वन्य जीव-जंतुओं की संख्‍या में आई इस गिरावट के मुख्‍य कारण हैं। इस अवधि के दौरान इनमें से कई कारकों के कारण अफ्रीका के वन्य जीव-जंतुओं की संख्‍या में 66 प्रतिशत की और एशिया प्रशांत के वन्य जीव-जंतुओं की संख्‍या में कुल 55 प्रतिशत की कमी आई। एक जीवनकाल से कम अवधि में, नदियों के जीव-जंतुओं की संख्‍या घटकर औसतन 83 प्रतिशत रह गई है, जो किसी भी प्रजाति वर्ग की संख्‍या में आई सर्वाधिक गिरावट है। आवास क्षेत्र की क्षति और बाहर जाने के मार्गों में आने वाली बाधाएं प्रवासी मछलियों की प्रजातियों के लगभग आधे संकटों के कारक हैं।

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया के सेक्रेटरी जेनरल रवि सिंह ने कहा, ''लिविंग प्लानेट रिपोर्ट, 2022 से पता चलता है कि कैसे जलवायु परिवर्तन व जैवविविधता की क्षति केवल पर्यावरण की समस्याएं नहीं बल्कि अर्थव्यवस्था, विकास, सुरक्षा और समाज की समस्याएं भी हैं - और इसीलिए उनका समाधान एक साथ किया जाना चाहिए। भारत में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव जल संसाधनों, कृषि, प्राकृतिक पारितंत्रों, स्वास्थ्य और आहार श्रृंखला पर पड़ेगा। हमें एक ऐसी सर्व-समावेशी सामूहिक कार्य-पद्धति की जरूरत है, जो हम में से प्रत्येक को कार्य करने की शक्ति दे, जो हमें एक अपेक्षाकृत अधिक स्थायी मार्ग पर ले जा सके, और सुनिश्चित करे कि हमारी गतिविधियों की लागत व लाभ सामाजिक स्तर पर उचित हों और उनमें सभी की समान हिस्सेदारी हो।''

लिविंग प्लानेट रिपोर्ट में कछारी वनों की भूमिका का भी विशेष उल्लेख किया गया है, जिनके संरक्षण व पुनर्स्थापन से जैवविविधता, जलवायु और लोगों के लिए एक अनुकूल समाधान मिल सकता है। महत्वपूर्ण होने के बावजूद, कछारी वनों का मत्स्यपालन, कृषि और तटीय विकास के कारण 0.13 प्रतिशत की वार्षिक दर से पतन जारी है। आंधियों और तटीय कटाव जैसे प्राकृतिक दबावों के साथ-साथ अति उपयोग व प्रदूषण के कारण भी कई कछारी वनों की क्षति होती है। इन कछारी वनों के पतन के चलते जैवविविधता के आवास क्षेत्र की क्षति होती है तथा तटवर्ती समुदायों को पारितंत्रीय सेवाएं नहीं मिल पातीं, और कुछ क्षेत्रों में, इससे उन भूभागों की क्षति हो सकती है, जहां तटवर्ती समुदाय रहते हैं। रिपोर्ट में उल्लेख है कि वर्ष 1985 से सुंदरवन के कछारी वन के 137 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में कटाव हुआ है, जिसके चलते वहां रहने वाले 10 मिलियन लोगों में से कई लोगों की भूमि और पारितंत्रीय सेवाओं में कमी आई है।  
  
जेडएसएल के डाइरेक्टर ऑव कन्जर्वेशन एंड पॉलिसी (संरक्षण एवं नीति निदेशक) डॉ. एंड्र्‌यू टेरी ने कहा : ''लिविंग प्लानेट इंडेक्स से पता चलता है कि कैसे हमने जीवन की नींव को ही काट कर निकाल दिया है, और स्थिति उत्तरोत्तर बदतर हो रही है। विश्व की आधी अर्थव्यवस्था और अरबों लोग सीधे तौर पर प्रकृति पर निर्भर हैं। जैवविविधता के पतन पर विराम और प्रमुख पारितंत्रों का पुनर्स्थापन वैश्विक कार्य सूचियों में शीर्ष पर होने चाहिए ताकि जलवायु, पर्यावरण व जन स्वास्थ्य के बढ़ते संकटों का सामना किया जा सके।''
इस एलपीआर रिपोर्ट में स्पष्टतः कहा गया है कि विश्व भर में देशी लोगों और स्थानीय समुदायों के अधिकारों, शासन और संरक्षण के नेतृत्व को मान्यता और सम्मान दिए बिना एक प्रकृति अनुकूल भविष्य का निर्माण संभव नहीं है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि संरक्षण व पुनर्स्थापन के कार्यों, विशेष रूप से खाद्य सामग्री के अधिक से अधिक स्थायी उत्पादन और उपयोग, में वृद्धि और सभी क्षेत्रों को समय रहते यथांसभव कार्बन से मुक्त कर इन दो संकटों को कम किया जा सकता है। लेखकगण नीति निर्माताओं से अर्थव्यवस्थाओं में सुधार की अपील करें ताकि प्राकृतिक संपदाओं का समुचित मूल्यांकन हो।
 
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कोमल चौधरी । सीनियर मैनेजर, मीडिया एवं पीआर, डब्ल्यूडब्लयू इंडिया। kchaudhary@wwfindia.net
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