रोज़ाना हम सब को कितने ही संदेश आते हैं - मोबाइल फ़ोन पर निजी संदेश, बाज़ार के घटते-बढ़ते  दामों की सूचना, स्वास्थय से सम्बंधित जानकारियां। हमारे निजी जीवन के कई फ़ैसले, हमारा संचार, व्यावसायिक निर्णय, यहां तक कई महत्वपूर्ण नीतियों के निर्माण भी ऐसे संदेशो से बड़े पैमाने पर प्रभावित होता है|

 लेकिन एक संदेश ऐसा भी है जिसे  हम सभी, दशक-दशकों से, नज़रअंदाज़ करते आ रहे हैं| आख़िर पृथ्वी भी तो - और ना जाने कब से - हमें चेतावनियां दे रही है!

1961 में, जब पहली बार यूनाइटेड नेशंस से सुसंगत आंकड़े उपलब्ध हुए, यह पता चला की मानवता की संसाधनों से मांग प्रकृति की भरण-पोषण की क्षमता से कहीं ऊपर जा पहुंची है| स्तनपायी जीवों, उभयचर प्राणियों, और सरीसृप जीवों की वैश्विक आबादी 1970 से 2012 के बीच 58% तक कम हो चुकी है|

हाल ही में प्रकाशित, डब्ल्यू डब्ल्यू एफ़  की लिविंग प्लेनेट रिपोर्ट (2016) के मुताबिक़ मछलियों, पक्षियों, स्तनपायी जीवों, उभयचर प्राणियों, और सरीसृप जीवों की वैश्विक आबादी 1970 से 2012 के बीच 58% तक कम हो चुकी है| 

ये आंकड़े मानवता  के लिए एक स्पष्ट संदेश हैं - हमारी गतिविधियां, हमारा अनियंत्रित संसाधनों का प्रयोग, पृथ्वी पर बढ़ते दबाव का प्राथमिक कारण है| क्या आप जानते हैं की अगर यह यथास्थिति कायम रही तो 2030 तक मानव जाती को अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए दो पृथ्वियों की आवश्यकता पड़ेगी? परन्तु इस ब्रहमांड मे तो सिर्फ एक ही पृथ्वी है, हम दूसरी कहाँ से लाएंगे?

बाकी विश्व की तुलना मे भारत के हालात थोड़े और गंभीर नज़र आते हैं| दुनिया के 7.6 % स्तनपायी जीव, 12.6 % पक्षी, 6.2 % सरीसृप जीव, 11.7 % मछलियां, 4.4 % उभयचर प्राणी और 6 % फूलदार पौधों की जातियां भारत में पायी जाती हैं|[1] दुर्भाग्यपूर्ण, इन सभी जातियों और इन्हे वास देने वाले जंगल बढ़ते दर से गायब होते जा रहे हैं| भारत के 41 % स्तनपायी जीव, 70 % ताज़े पानी में रहने वाली मछलियां और 57 % उभयचर प्राणी विलुप्त होने की कगार पर खड़े हैं|[2]

आपको ये जान के अचम्भा होगा के दुनिया के सिर्फ पांच देश का पारिस्थितिक पद्चिन्ह विश्व के पारिस्थितिक पद्चिन्ह का 50%  है| पारिस्थितिक पद्चिन्ह वो दर है जिससे मानवता के उपभोग की तुलना प्रकृति की नवीकरण की क्षमता से  की जाती है| केवल दो देशों (चीन और संयुक्त राष्ट्र अमेरिका) का कार्बन पदचिन्ह दुनिया के कुल कार्बन पदचिन्ह का 31% हैं| अगर प्रति-व्यक्ति पदचिन्ह देखा जाए तो, भारत ऐसे देशों की सूची में 136 नंबर पर आता है, मगर वहीँ हमारे देश की जनसंख्याँ इस प्रति-व्यक्ति पदचिन्ह से गुना हो कर, हमें इस सूची में तीसरे नंबर पर ला खड़ा करती है| जैसे जैसे देश की सम्पदा बढ़ेगी, उपभोग का दर भी बढ़ेगा और हालात और जटिल बनेंगे|

जहां आर्थिक विकास के ढेरों फायदे हैं - जीवन स्तर और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार, बेहतर शिक्षा व्यवस्था, रोज़गार के दरों में बढ़ोतरी - वहीँ अगर विकास की तरफ बढ़ते हुए वातावरण को नज़रअंदाज़ करा जाए तो प्रकृति और उसपे निर्भर जीव-जन्तुओ के लिए कई मुश्किलें उत्पन्न हो सकती हैं|

वर्तमान में पर्यावरण से जुड़ी सभी समस्याओं मे से भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती जल है| 20 में से 14 मुख्य रिवर बेसिन पानी की घोर कमी से प्रभावित हैं और 2050 तक इन्हे चरम पानी की कमी का सामना करना पड़ सकता है|[3] भारत का 70% सतही जल दूषित है और 60% भूजल संसाधन गंभीर स्तिथि में हैं|[4] ऐसी परिस्थिति में, आने वाले दशक के अंदर-अंदर, लोगों के रोज़ी-रोटी, स्वास्थ्य, ऊर्जा एवं खाद्य उत्पादन - सब ही खतरे में आ सकते हैं| पानी एक ऐसा तत्व है जिस की ज़रुरत सभी को है, और जिसके बिना जीवन संभव नहीं| इसीलिए जल निकायों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उठाने में  सभी की भागीदारी की आवश्यकता है - फिर चाहे वो प्रतियोगी उपयोगकर्ता हों या आम आदमी|

पिछले 4 दशकों से डब्ल्यू डब्ल्यू एफ़ इंडिया पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए लगातार काम कर रहा है| फ़सल उगाने के नए तरीके और जंगल, जल निकायों और मत्स्य पालन के प्रभंदन के सतत उपाय खोज, डब्ल्यू डब्ल्यू एफ़  इंडिया पर्यावरण सरंक्षण से एक ऐसी पृथ्वी सजर्न करना चाहता है जहां मानव और हमारे गृह पर रहने वाले सभी पशु-पक्षी समरसता से रहें| डबलयु डब्ल्यू एफ़ उपभोक्ताओं, व्यवसायों और सरकार के साथ मिल कर बाज़ारों की ख़रीद-फ़रोख़्त व्यवस्था में ज़रूरी बदलाव लाने के लिए कार्यरत है| इसके अंतरगत, डब्ल्यू डब्ल्यू एफ़  व्यवसायों को ज़िम्मेदार तरीके से अपनी मूल्य श्रंखला का प्रभंदन करने के लिए भी प्रेरित करता है ताकि पर्यावरण पर कम से कम भार पड़े| इसके अलावा, ये संस्था देश के कई पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण इलाकों को और उनमे रहने वाली आलिशान प्रजातियों को सुरक्षित रखने में कार्यरत है|

पृथ्वी का सन्देश स्पष्ट है और इसे नज़रअंदाज़ करने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं| मानव जाती ज़मीन और प्राकृतिक संसाधनों का अति-प्रयोग करती आयी है - जल, भोजन, फाइबर और लकड़ी का अनुचित उपयोग कर हम पृथ्वी पर गहरी छाप छोड़ रहे हैं| एक उज्जवल भविष्य का निर्माण करने के लिए प्रथम आवश्यकता ऐसे अभिनव तरीकों के आविष्कार की है जो संसाधनों की खपत कम कर, कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा घटा कर, मानवता की पृथ्वी पर छाप कम कर सकें। ऐसा भविष्य सुनिश्चित करने के लिए - उपभोक्ताओं, व्यवसायों, उद्योगों और सरकार - सभी की भागीदारी बेहद ज़रूरी है|

इस विश्व पर्यावरण दिवस पर आवश्यकता है की हम सब एकजुट होकर धरती की पुकार सुने और अपनी अपनी जीवनशैली मे कुछ बदलाव करे, ऐसे विकल्प अपनाये जिससे धरती पर पड़ा भार थोड़ा कम हो और हम अपने आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सर्व समृद्ध भविष्य का निर्माण करे|

 

[1] बायोडायवर्सिटी प्रोफाइल ऑफ़ इंडिया - डॉ. एस. के. पुरी

[2] बायोडायवर्सिटी इन इंडिया - इ. सोमनाथन

[3] //awsassets.wwfindia.org/downloads/water_stewardship_report_final_edited_1.pdf

[4] एशियाई डेवलपमेंट बैंक इंस्टिट्यूट 2012 - एशियास विकेड एनवायर्नमेंटल प्रोब्लेम्स

- translation by Vrinda Nagar

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