उत्तर प्रदेश का एकमात्र नेशनल पार्क दुधवा नेशनल पार्क जो कि लखीमपुर खीरी जिले में है I नेशनल पार्क के आसपास बसे गांव में विगत कुछ वर्षों से हाथी-मानव संघर्ष  बढ़ गया है I दरअसल हाथी एक लंबी दूरी तक चलने वाला जानवर होता है और विगत कई सालों से नेपाल राष्ट्र से हाथियों का आवागमन होता रहा है परंतु कुछ सालों से हाथियों ने अपना बसेरा दुधवा नेशनल पार्क के अंदर बना लिया है और गन्ने की फसल से आकर्षित होकर आस-पास के गांव में आते जाते रहते हैंI

दुधवा नेशनल पार्क के दक्षिणी सीमा पर एक गांव चौखडा फार्म स्थित है जहां के किसान विगत कई वर्षों से अपनी खेती को जंगली हाथियों से बचाने के लिए दिन रात जूझ रहे थे I इस तराई इलाके में जहां सर्दी की रात अत्यधिक ठिठुरन भरी होती है तथा बरसात भी अत्यधिक होती है, ऐसे इलाके में जंगली हाथियों के खेतों में आ जाने पर ग्रामीणों को अपनी जान जोखिम में डालकर रात रात भर जागकर, खेतों में आने वाले हाथियों को भगाकर अपने खेतों की सुरक्षा करनी पड़ती थी I ग्रामीण एक तरफ से हाथियों को भगाते तो हाथी दूसरी तरफ जाकर नुकसान कर देते I ग्रामीणों ने गोले पटाखे तथा अन्य संसाधनों को अपनाया परंतु नुकसान बढ़ता जा रहा था एवं ग्रामीणों की हिम्मत जवाब दे रही थी ऐसे माहौल में ग्रामीणों के अंदर वन्य जीवो के प्रति नकारात्मक माहौल उत्पन्न हो रहा था विशेषकर जंगली हाथियों के बारे मे I इसको महसूस करते हुए डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया ने ग्रामीणों के साथ समन्वय स्थापित किया, बैठक में ग्रामीणों ने डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया से मदद की गुहार लगाई इससे पहले भी डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया ने ग्रामीणों के साथ मिलकर वन्य जीव संरक्षण एवं हाथी बचाव दल के संसाधनों पर काम कर चुका था I ग्रामीणों के बीच डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया के साथ संरक्षण के मुद्दे पर बेहतर समन्वय रहा है I

(स्थानीय समुदाय के साथ जंगली हाथियों के द्वारा किए जाने वाले नुकसान से बचाव हेतु बैठक)

इसी क्रम की बैठक में स्थानीय समुदाय ने डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया से जंगली हाथियों से बचाव हेतु कोई ठोस समाधान हेतु सुझाव मांगा क्योंकि जो जंगली हाथियों के सबसे दबाव वाला क्षेत्र था वह 7 से 10 किलोमीटर लंबा था एवं दुधवा नेशनल पार्क कि दक्षिणी सीमा से लगा हुआ क्षेत्र था I डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया  ने किसानों को  कम खर्चे वाला  सोलर फेंस लगाने हेतु सुझाव दिया एवं उनको अवलोकन कराने हेतु अमानगढ़ टाइगर रिजर्व भ्रमण पर भी ले गए जहां पर स्थानीय समुदाय द्वारा संचालित कम खर्चे वाला सोलर फेंस लगा हुआ था I वहां पर गए किसानों ने उस सोलर फेंसिंग को बारीकी से देखा एवं यह पाया की उस सोलर फेंस मैं लकड़ी के खंभे प्रयोग में लाए गए थे जिनके हाथियों द्वारा तोड़े जाने तथा जमीन के अंदर सड़ जाने की संभावना अत्यधिक थी I वहीं पर किसानों ने यह निर्णय लिया कि वह उच्च स्तर का लोहे के खंभे वाले सोलर फेंस का निर्माण करेंगे I ग्रामीणों ने पुनः बैठक में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया से तकनीकी जानकारी एवं आर्थिक सहयोग करने हेतु अनुरोध किया I डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया ने ग्रामीणों को यह बताया कि सोलर फेंस के संचालन में सबसे महत्वपूर्ण कार्य उसका रखरखाव है जिसको की लंबे समय तक ग्रामीणों द्वारा ही संचालित किया जाएगा तथा इसके लिए ग्रामीणों की आपस में एकता एवं समन्वय बहुत आवश्यक है I ग्रामीणों ने बैठक में आश्वस्त किया की वह समिति बनाकर फेंस की सुरक्षा एंव उसका अनुरक्षण करेंगे I स्थानीय समुदाय ने अपनी क्षमता के अनुसार कुल लागत का  लगभग 40% धनराशि वहन किया तथा डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया ने  60% का सहयोग प्रदान किया एंव एक प्रतिष्ठित एंव मान्यता प्राप्त फर्म द्वारा 7 किलोमीटर सोलर फेंस का  निर्माण किया गया I

(चौखडा फार्म स्थित सोलर फेंस)

किसानों ने फेंस निर्माण के दौरान सभी कार्यों में उत्साह पूर्वक सहयोग प्रदान किया एवं तकनीकी रूप से कार्य करने वालों के साथ रहकर उसके बारे में ज्ञान प्राप्त करते रहे I इस प्रकार से स्थानीय समुदाय के सहयोग से 7 किलोमीटर फैंस का निर्माण उत्तर प्रदेश में एक अनूठा उदाहरण है I इस कार्य हेतु जनप्रतिनिधियों वन विभाग के अधिकारियों तथा अन्य संरक्षण संस्थाओं द्वारा इस कार्य की सराहना की गई I फेंस लग जाने के बाद किसानों को लगभग हाथियों के नुकसान से छुटकारा मिल गया I इस बारे में जंगल सीमा से सटे एक फार्म के स्वामी श्री रमाशंकर पांडे बताते हैं कि इससे पहले जब हाथी खेतों में आ जाते थे तो श्रमिकों द्वारा फोन से सूचना मिलती थी वह 16 किलोमीटर दूर मझगई गाँव से अपने फार्म तक हाथी भगाने जाते थे परंतु अब यह समस्या समाप्त हो गई I

श्री पांडे का कहना है जंगली हाथियों का इस क्षेत्र से पुराना नाता है वर्ष 2011 में उनके गन्ने के खेत में जंगली हाथियों ने एक बच्चे को जन्म दिया था जिसको कि गांव वालों ने दो दिन तक बचाया और उस अवधि तक खेतों की तरफ नहीं गए सुरक्षित रास्ता पार जाने के बाद हाथी अपने बच्चे को लेकर चले गए I इसके अलावा वह किसानों के तरफ से हाथियों की सुरक्षा हेतु सावधानी के तरीकों को बताते हैं कि किसानों के  खेतों में सिंचाई के साधन हेतु ट्रांसफार्मर और मोटर लगे होते हैं जोकि बिजली रहने पर चालू हालत में रहते हैं, जंगली हाथियों के आ जाने पर सबसे ज्यादा खतरा उनको करंट से होता है जब भी गांव वालों को सूचना मिलती है कि हाथी आ गए हैं तो बिजली विभाग को फोन करके लाइट कटवा देते हैं I वो बताते हैं की वर्ष 2011 में ऐसी घटना में पांच हाथी मारे गए थे I

समय बीतने के साथ-साथ जंगली हाथियों ने अपने स्वभाव के अनुसार फेंस को नुकसान करना प्रारंभ कर दिया I कई बार हाथी द्वारा फेंस  को तोड़ने का प्रयास किया गया तथा फेंस  को तोड़ा भी गया परंतु स्थानीय किसानों द्वारा फेंस की मरम्मत अपने स्तर से की गयी I इस बारे में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया द्वारा फसल क्षति का आकलन किया गया तो यह पाया गया कि पहले जो नुकसान होता था उस की अपेक्षा अब नुकसान मात्र 10% रह गया है एवं किसानों को आर्थिक लाभ हो रहा है I पिछले 5 वर्षों से स्थानीय समुदाय द्वारा बिना किसी सरकारी अथवा संस्था द्वारा आर्थिक मदद के अपने स्तर से फेंस की साफ-सफाई तथा हाथियों द्वारा पोल को तोड़े जाने एवं  तार  को नष्ट किए जाने की मरम्मत अपने स्तर से की जा रही है I 5 साल हो जाने के पश्चात यह पाया गया तार एंव इन्सुलेटर काफी पुराने हो गए हैं एवं जर्जर अवस्था में हो गए कुछ खंभे भी हाथियों द्वारा क्षतिग्रस्त किये गए थे I इस हेतु फेंस के  मरम्मत हेतु पुनः एक फर्म से सर्वे कराकर कोटेशन माँगा गया परन्तु जिस धनराशि का कोटेशन प्राप्त हुआ वह धनराशि ग्रामीणों के क्षमता से बाहर थी I ग्रामीणों ने पुनः बैठक में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया से इस कार्य को अपने स्तर से करने में किसानो के मध्य संयोजन हेतु अनुरोध किया I डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया ने उनकी मदद करते हेतु सभी किसानो को श्रमदान एवं संसाधन जुटाने हेतु, प्रेरित किया I कुशल संयोजन एवं किसानो के श्रमदान/ आर्थिक सहयोग से यह कार्य बहुत कम धनराशि में संपन्न हो गया एवं फेंस निर्माण के समय जिन युवको ने तकनीकी ज्ञान प्राप्त किया था उसका भरपूर इस्तेमाल कर फेंस पुनः चालू कर दिया I
(चौखड़ा फार्म निवासी कृषक श्री अमनदीप सिंह)

गाँव के स्थानीय किसान श्री अमनदीप सिंह कहते है इस फेंस लगने के बाद बहुत से युवक इसकी मरम्मत एवं तकनीकी जानकारियों से अवगत हो गये है तथा भविष्य में हम अपने स्तर से कम लागत में सोलर फेंस संचालित करने में सक्षम है I

गाँव के किसान एवं फेंस कमेटी के अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह कहते है, कि डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया ने हम लोगो को रास्ता दिखाया एवं हर स्तर पर सहयोग किया I समय-समय पर डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया एवं वन विभाग के उच्चाधिकारियों के सहयोग से ग्रामीणों का उत्साह बना रहा एवं हम लोगो कि फसलो के नुक्सान में भरी कमी आयी एवं आर्थिक लाभ हुआ I स्थानीय किसान अब गन्ने के अलावा केले की भी खेती कर रहे है जिसमे उनको गन्ने से अधिक लाभ मिल रहा है I

इस फेंस कि सफलता को दृष्टिगत रखते हुए दुधवा नेशनल पार्क ने राज्य आपदा निधि से वित्त पोषित निधि से फेंस को 3 कि०मी० बढ़ाने का निर्णय लिया गया है जिस पर कार्य जारी है I
(चौखड़ा फार्म गांव के कृषक एवं फैंस कमेटी के अध्यक्ष श्री नरेंद्र सिंह)

इस प्रकार यह स्थानीय समुदाय के स्वामित्व वाला सोलर फेंस है जिसमे मानव वन्य जीव संघर्ष प्रबंधन तथा वन्य जीव संरक्षण समाहित है I      

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